A workshop dedicated to the traditional art of Godan, promoting self-reliance and cultural heritage.
हाजीपुर। वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार के विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) कार्यालय द्वारा प्रायोजित एवं मिथिला उत्थान संगठन, जितवारपुर (मधुबनी) के सहयोग से "डिज़ाइन एवं प्रौद्योगिकी विकास कार्यशाला (DDW)" का शुभारंभ 16 अगस्त 2025 से हाजीपुर में हुआ।
कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) विनय पासवान, प्राध्यापक एन.एस.डी कॉलेज, सरमस्तपुर ने किया। यह कार्यशाला 25 दिनों तक चलेगी और इसमें अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के शिल्पियों को गोदना पेंटिंग की पारंपरिक व आधुनिक तकनीक से प्रशिक्षित किया जाएगा। आयोजन स्थल प्रार्थना एन्क्लेव, एन.एच.-22, दिघी, हाजीपुर (वैशाली) है।
डॉ. विनय ने बताया गोदना पेंटिंग की शुरुआत 1970 के दशक में बिहार के जितवारपुर गाँव में दुसाध दलित समुदाय द्वारा की गई थी। जर्मन मानवविज्ञानी एरिका मोजर के सुझाव पर, दुसाध समुदाय की महिलाओं ने पारंपरिक गोदना कला को कैनवास पर उकेरना शुरू किया, जिससे यह एक चित्रकला शैली बन गई। गोदना चित्रकला ने दुसाध समुदाय के लिए अभिव्यक्ति का एक नया माध्यम प्रदान किया, जिसमें वे प्रकृति, जानवरों, पक्षियों और नदियों को चित्रित करते थे। यह कला, मिथिला चित्रकला के विपरीत, जो मुख्य रूप से धार्मिक और भक्तिपूर्ण होती है, प्रकृति और लोककथाओं से प्रेरित है।
गोदना पेंटिंग का इतिहास 200 ईसा पूर्व तक पुराना माना जाता है। 1970 के दशक में मधुबनी की जाहिदा व चन्नो देवी ने इस कला को कागज़/कैनवास पर उतारकर नई पहचान दी। आज यह कला न केवल संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है, बल्कि शिल्पकारों के लिए आत्मनिर्भरता और रोजगार का साधन भी बन रही है।
आयोजक मिथिला उत्थान संगठन के सचिव श्री विनय कुमार झा ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य शिल्पियों को आधुनिक डिज़ाइन एवं तकनीक से प्रशिक्षित कर उनके शिल्प को बाजार से जोड़ना है, ताकि उन्हें बेहतर आमदनी और पहचान मिल सके। इस मौके इस मौके पर नागमणि राय डिज़ाइनर,श्रवण पासवान राज्य पुरस्कृत प्रशिक्षक, कृष्णा कुमार शिक्षक, बसंत कुमार सामाजिक कार्यकर्ता, अमृता कुमारी,शिवानी कुमारी,अनुराधा कुमारी,नीलम कुमारी,निक्की कुमारी,रानी कुमारी,रजनीश पासवान एवं अन्य प्रतिभागी मौजूद थे।